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ग्रामोत्थान परियोजना ने महिला समूहों के लिए खोला स्वरोजगार का द्वार

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पौड़ी , उत्तराखंड – प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में ग्रामोत्थान परियोजना पौड़ी जिले में वोकल फॉर लोकल, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण के नारे को मजबूत कर रही है। इसका सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। ऐसे ही प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है विकास खंड खिर्सू के भूमि स्वायत्त सहकारिता चमराड़ा ने। महिलाओं का यह समूह गाय के गोबर से धूपबत्ती, सामब्राणी कप, दिये एवं मूर्तियां बना रहा है। इससे समूह सहित गौ पालकों को आर्थिक लाभ मिल रहा है। खास बात यह है कि यह उत्पाद इको फ्रेंडली होने की वजह से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पर नही पडे़गा। जिला मुख्यालय पौड़ी से करीब 25 किलोमीटर दूर चमराड़ा और इसके आसपास के क्षेत्रों में अधिकांश लोग डेरी उत्पादन से जुड़े हैं। जिसके चलते यहां गोबर भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। इसी को देखते हुए ग्रामोत्थान परियोजना ने चमराड़ा में हिलांस देशी गाय गोबर उत्पाद यूनिट की स्थापना की। यूनिट में गोबर को पीसने के लिए पल्वराइजर मशीन (चक्की), पीसे हुए गोबर व अन्य कच्चे माल को मिलाने हेतु मिक्सचर मशीन, सामब्राणी बनाने हेतु ऑटोमेटिक सामब्राणी कप मेकिंग मशीन, ऑटोमेटिक धूपकोन मेकिंग मशीन, कम्प्रेशर मशीन, दिया मेकिंग मशीन सहित मूर्ति बनाने हेतु मोल्ड उपलब्ध कराए गए।

यूनिट संचालन का जिम्मा भूमि स्वायत्त सहकारिता चमराड़ा को दिया गया। इस सहकारिता के अंतर्गत 64 समूह, 9 ग्राम संगठन और 385 सदस्य जुड़े हुए हैं। ग्रामोत्थान के जिला परियोजना प्रबंधक कुलदीप बिष्ट ने बताया कि इस क्षेत्र में कृषि कम होने के कारण गोबर आसानी से उपलब्ध हो रहा है। सहकारिता द्वारा समूह सदस्यों से 20 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से सूखा गोबर खरीदा जा रहा है। इसके साथ ही समूह की महिलाओं को यूनिट में 300 रुपये प्रतिदिन की दर से रोजगार भी मिल रहा है। वर्तमान में इस इकाई में साम्ब्राणी कप, धूपबत्ती और दीपकों का निर्माण किया जा रहा है। सामग्री बनाने के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाया गया है। इस वर्ष दीपावली और नवरात्रि के अवसर पर 8 से 10 लाख रुपये का व्यवसाय करने का लक्ष्य रखा गया है।मुख्य विकास अधिकारी गिरीश गुणवंत का कहना है कि गोबर आधारित उत्पाद न केवल प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग का उदाहरण हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद हैं। रासायनिक धूपबत्तियों की तुलना में यह उत्पाद वायु प्रदूषण से बचाव में सहायक हैं। इस पहल ने ग्रामीण महिलाओं को न केवल रोजगार दिया है, बल्कि उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भर बनाने का काम किया है। उन्होंने बताया कि भविष्य में इस प्रोजक्ट को अन्य स्थानों में भी विस्तार दिया जाएगा। ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले।


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