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रामेश्वरम कैफे विस्फोट: एनआईए का बड़ा खुलासा, मुस्लिम युवाओं को डार्क वेब और क्रिप्टो के जरिए आईएसआईएस में भर्ती करने की साजिश

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बेंगलुरु,राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने रामेश्वरम कैफे विस्फोट मामले में चार आरोपियों के खिलाफ दायर किए गए आरोपपत्र में एक सनसनीखेज खुलासा किया है। इसमें बताया गया है कि आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में मुस्लिम युवाओं की भर्ती के लिए एक बड़ी साजिश रची जा रही थी। इस साजिश को अंजाम देने के लिए आतंकवादी डार्क वेब, क्रिप्टोकरेंसी, और टेलीग्राम जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग कर रहे थे, ताकि सुरक्षा एजेंसियों की नजरों से बचा जा सके।

चार आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर
एनआईए ने सोमवार को बेंगलुरु के हाई-प्रोफाइल रामेश्वरम कैफे विस्फोट मामले में चार आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया। इनमें मुसाविर हुसैन शाजिब, अब्दुल मथीन अहमद ताहा, माज मुनीर अहमद, और मुजम्मिल शरीफ के नाम शामिल हैं। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और पीडीएलपी अधिनियम के तहत आरोप दायर किए गए हैं। फिलहाल, चारों आरोपी आरसी-01/2024/एनआईए/बीएलआर मामले में न्यायिक हिरासत में हैं।

1 मार्च 2024 को बेंगलुरु के आईटीपीएल क्षेत्र के ब्रुकफील्ड स्थित रामेश्वरम कैफे में हुए आईईडी विस्फोट में नौ लोग घायल हो गए थे, और होटल की संपत्ति को व्यापक नुकसान हुआ था। इस मामले की जांच में यह सामने आया कि यह विस्फोट एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य आतंक को फैलाना और आईएसआईएस के एजेंडे को बढ़ावा देना था।

आईएसआईएस विचारधारा को बढ़ावा देने की साजिश
एनआईए की जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि आरोपी माज मुनीर अहमद और मुजम्मिल शरीफ मुस्लिम युवाओं को आईएसआईएस विचारधारा के प्रति कट्टरपंथी बनाने में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्होंने कई युवाओं को प्रभावित किया और उन्हें आईएसआईएस की विचारधारा में ढालने का प्रयास किया। ताहा और शाजिब ने धोखाधड़ी से प्राप्त भारतीय सिम कार्ड और बैंक खातों का उपयोग किया ताकि सुरक्षा एजेंसियों से बचा जा सके। इसके लिए उन्होंने डार्क वेब का भी सहारा लिया, जिसके माध्यम से उन्होंने भारतीय और बांग्लादेशी पहचान पत्रों वाले दस्तावेज डाउनलोड किए।

पूर्व दोषियों से कनेक्शन
जांच से यह भी पता चला है कि अब्दुल मथीन अहमद ताहा को एक पूर्व दोषी शोएब अहमद मिर्जा ने लश्कर-ए-तैयबा के बेंगलुरु साजिश मामले में भगोड़े मोहम्मद शहीद फैसल से मिलवाया था। इसके बाद, ताहा ने अपने हैंडलर फैसल को अल-हिंद आईएसआईएस मॉड्यूल मामले के आरोपी महबूब पाशा और आईएसआईएस दक्षिण भारत के अमीर खाजा मोहिदीन से मिलवाया। इस नेटवर्क के माध्यम से इन सभी ने मिलकर आईएसआईएस की विचारधारा के अनुसार आतंक को फैलाने की साजिश रची थी।

डार्क वेब और क्रिप्टो के जरिए भर्ती
एनआईए की जांच में पाया गया कि इस साजिश के पीछे डार्क वेब और क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग प्रमुख रूप से किया गया। ये माध्यम इसलिए चुने गए क्योंकि ये डिजिटल प्लेटफार्म पारंपरिक निगरानी तंत्र से बचने का आसान रास्ता प्रदान करते हैं। साथ ही, टेलीग्राम जैसे एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग प्लेटफार्म का उपयोग भी किया गया ताकि संचार को छिपाया जा सके और सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से कार्रवाई में देरी की जा सके।

भविष्य की सुरक्षा के लिए चुनौती
इस मामले ने सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है कि वे किस प्रकार से इस तरह की डिजिटल साजिशों को बेनकाब कर सकती हैं और इस प्रकार की गतिविधियों पर निगरानी कैसे बढ़ाई जा सकती है। एनआईए और अन्य एजेंसियों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे डार्क वेब, क्रिप्टोकरेंसी, और एन्क्रिप्टेड संचार माध्यमों पर गहरी नजर रखें ताकि भविष्य में इस तरह की किसी भी साजिश को समय रहते रोका जा सके।

यह मामला एक गंभीर चेतावनी है कि आतंकवादी संगठनों द्वारा उपयोग किए जा रहे आधुनिक तकनीकों के खिलाफ निरंतर सतर्कता और उन्नत जांच तकनीकों का विकास आवश्यक है। इस घटना ने देश की सुरक्षा एजेंसियों को और भी सतर्क बना दिया है, ताकि वे भविष्य में ऐसी किसी भी साजिश को नाकाम कर सकें।


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