इगास बगवाल: उत्तराखंड की वो दीपावली जो वीरों की विजय के बाद जली

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उत्तराखंड देवभूमि, जहां हर पर्व केवल आस्था का नहीं, बल्कि पहचान और परंपरा का उत्सव होता है।यहां हर घर में दीपावली का एक नया नाम है — ‘इगास बगवाल’।दीपावली के 11 दिन बाद जब मैदानों में दीपों की लौ ठंडी पड़ चुकी होती है, तब पहाड़ों में एक बार फिर रोशनी, उल्लास और ढोल-दमाऊं की थाप गूंज उठती है।क्योंकि इगास का मतलब है —“वो दीपावली जो हमारे अपने वीरों की विजय के बाद घर लौटी थी।”कहते हैं, जब गढ़वाल के वीर सिपाही माधो भंडारी युद्ध से लौटे, तब गांववालों ने उनके स्वागत में दीप जलाए, पकवान बनाए और बगवाल खेली।तभी से “इगास” उस लोकगाथा की याद बन गई —जहां वीरता, वफादारी और लोक आनंद एक साथ झलकते हैं। लोक मान्यता है कि जब उत्तराखंड के लोग सेना या व्यापार के सिलसिले में मैदानों में गए थे,तो वहां दीपावली मनाने के बाद वे जब अपने गांव लौटे, तब उन्होंने अपने घरों में दीप जलाकर अपने अपनों के संग दीपोत्सव मनाया।तभी से यह पर्व “इगास” कहलाया।इगास का मतलब केवल पूजा या प्रकाश नहीं —यह है लोक संस्कृति, गीत, नृत्य और मेल-मिलाप का त्योहार।इस दिन घरों में बनते हैं पारंपरिक पकवान — पूरी, पुए, भट्ट की चुड़कानी, जंगोरे की खीर, अरसे और सिंगल बाड़े।गांवों में बच्चे ‘इगास पांडे जी की जै’ कहते हुए घर-घर मिठाई मांगते हैं।ढोल-दमाऊं की थाप पर नाचते गाते लोग…हर घर के आंगन में ‘भैलो’ खेलते हुए लोकगीत गूंजते हैं।पौराणिक मान्यता के अनुसार,दीपावली भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई गई थी।लेकिन पहाड़ों में तब तक खबर देर से पहुंची —और जब लोगों को यह शुभ सूचना मिली,उन्होंने उसी दिन दीप जलाकर खुशी मनाई।तभी से यह पर्व ‘इगास बगवाल’ कहलाया — यानी दीपावली का उत्तराखंडी रूप। वैसे तो‘इगास बगवाल’ को लेकर कई कथा-कहानियां हैं। लेकिन अगर इगास को वास्तव में जानना हो तो, केवल दो लाइनों में जाना जा सकता है। इन्हीं दो पंक्तियों में पूरे त्योहार का सार छिपा है। वो लाइनें हैं…बारह ए गैनी बग्वाली मेरो माधो नि आई, सोलह ऐनी श्राद्ध मेरो माधो नी आई। मतलब साफ है। बारह बग्वाल चली गई, लेकिन माधो सिंह लौटकर नहीं आए। सोलह श्राद्ध चले गए, लेकिन माधो सिंह का अब तक कोई पता नहीं है। पूरी सेना का कहीं कुछ पता नहीं चल पाया। दीपावली पर भी वापस नहीं आने पर लोगों ने दीपावली नहीं मनाई। इगास की पूरी कहानी वीर भड़ माधो सिंह भंडारी के आसपास ही है।