ग्रामीणों ने विधायक इरफान अंसारी का पुतला दहन किया,मांगों को लेकर प्रकट किया आक्रोश

ग्रामीणों ने विधायक इरफान अंसारी का पुतला दहन किया,मांगों को लेकर प्रकट किया आक्रोश

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झारखंड-जामताड़ा प्रखंड के चेंगाईडीह गांव के टावर चौक पर अक्रोशित ग्रामीणों ने स्थानीय विधायक और ग्रामीण विकास मंत्री इरफान अंसारी का पुतला दहन किया। इस दौरान ग्रामीणों ने मंत्री के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और अपनी मांगों को लेकर आक्रोश प्रकट किया।

मुख्य मुद्दे:
ग्रामीणों का कहना है कि गांव की हजारों की आबादी के बावजूद यहां कोई हाई स्कूल नहीं है। विधायक इरफान अंसारी ने पहले गांव में हाई स्कूल बनाने का आश्वासन दिया था। इसके लिए ग्रामीणों ने चंदा जुटाकर डेढ़ एकड़ जमीन भी खरीदी, लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी हाई स्कूल की स्थापना नहीं हुई। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि इरफान अंसारी मुसलमानों की वोट बैंक समझकर उन्हें बेवकूफ बना रहे हैं।

विद्यालय की स्थिति:
गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय में सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं है, और विद्यालय की पठन-पाठन व्यवस्था पारा शिक्षकों के भरोसे है। ग्रामीणों ने बताया कि मंत्री के कार्यकर्ता स्कूल प्रबंधन समिति पर कब्जा जमाए हुए हैं, जिसके चलते कोई सरकारी शिक्षक यहां नहीं टिकता। हाल ही में जिला शिक्षा अधीक्षक ने एक सरकारी शिक्षक को डेपुटेशन पर भेजा था, लेकिन मंत्री के दबाव में उसे महज 12 घंटे के अंदर हटा दिया गया।

ग्रामीणों की चिंता:
ग्रामीणों का कहना है कि मंत्री नहीं चाहते कि यहां के बच्चे शिक्षित हों। पुतला दहन के दौरान नवाब अंसारी, समसुद्दीन अंसारी, सजाउद्दीन अंसारी और हबीबुल्लाह अंसारी समेत कई स्थानीय लोग उपस्थित थे।

विद्यालय प्रबंधन में अनियमितताएँ:
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि स्कूल का प्रधान अध्यापक इरफान अंसारी है, और प्रिंसिपल के पिताजी रउफ अंसारी भी एसएमसी सदस्य हैं। इससे स्पष्ट होता है कि स्कूल प्रबंधन में अनियमितताएँ हैं और स्थानीय राजनीति के चलते बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है।

ग्रामीणों ने यह तय किया है कि यदि उनकी मांगें जल्द ही नहीं मानी गईं, तो वे आगे और अधिक कठोर कदम उठाने को बाध्य होंगे। उनका लक्ष्य है कि गांव में एक उचित हाई स्कूल स्थापित किया जाए और सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति सुनिश्चित की जाए, ताकि बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके।

यह घटना जामताड़ा में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति और स्थानीय राजनीतिक दबावों को उजागर करती है, जिससे ग्रामीणों में निराशा और आक्रोश व्याप्त है।


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