NEWS BY: Pulse24 News
उत्तरकाशी जिले के सीमांत विकास खंड भट्टवाड़ी के भोटिया जनजाति के लोग सर्दियों में खासतौर पर गर्म कपड़े तैयार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। यह लोग पहाड़ी भेड़ों और बकरियों की ऊन से जैकेट, कम्बल, टोपियां, वास्कट और अन्य गर्म कपड़े तैयार करते हैं, जिन्हें ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले लोग और भारतीय सेना खासतौर पर सियाचिन ग्लेशियर में तैनात जवानों के लिए बड़ी संख्या में खरीदते हैं। इस समय, इन कपड़ों की भारी डिमांड है, खासकर उन ठंडे मौसम वाले राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और सिक्किम से, जो सर्दियों में इन विशेष गर्म कपड़ों के लिए उच्च गुणवत्ता की खोज में रहते हैं।
भोटिया जनजाति की पारंपरिक कला
भोटिया जनजाति के लोग अपने पारंपरिक तरीके से पहाड़ी भेड़ों और बकरियों की ऊन से कपड़े तैयार करते हैं। यह ऊन न केवल गर्म होती है, बल्कि लंबे समय तक टिकाऊ भी रहती है, जिससे ये कपड़े सालों तक खराब नहीं होते। भोटिया लोग अपने हथकरघा कला और ऊन के कपड़ों के लिए प्रसिद्ध हैं। भट्टवाडी और आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भेड़-बकरियों का पालन किया जाता है, और उनके ऊन से सर्दी से बचने के लिए जरूरी कपड़े तैयार किए जाते हैं।
यह कपड़े ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक जीवन रक्षक की भूमिका निभाते हैं। इनके द्वारा तैयार किए गए जैकेट, वास्कट, टोपियां और कम्बल खासतौर पर सर्दी से बचाने में अत्यधिक कारगर होते हैं। यही कारण है कि इन कपड़ों की डिमांड हर साल बढ़ रही है और इस बार की डिमांड तो पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है।
वर्तमान में बढ़ी डिमांड
इस साल, भोटिया जनजाति के द्वारा तैयार किए गए कपड़ों की बिक्री में भारी वृद्धि देखी गई है। अब तक, उत्तरकाशी जिले के सीमांत क्षेत्रों से 15 से 20 लाख रुपये के गर्म कपड़े बिक चुके हैं। इस बढ़ती हुई डिमांड का मुख्य कारण जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे ठंडे क्षेत्रों के लोग हैं, जो इस ऊन से बने कपड़ों की उच्च गुणवत्ता को पहचानते हैं। इसके अलावा, भारतीय सेना भी सियाचिन ग्लेशियर में तैनात जवानों के लिए बड़ी मात्रा में गर्म जैकेट और अन्य कपड़े खरीदने के लिए इनकी ओर रुख करती है।
सरकार से सहयोग की उम्मीद
ग्रामवासियों का कहना है कि यदि सरकार उन्हें बड़े आयोजनों और मेलों में निशुल्क स्टॉल उपलब्ध कराए, तो इससे न केवल स्थानीय उत्पादों की बिक्री में और बढ़ोतरी होगी, बल्कि इन कपड़ों की मांग विदेशों तक भी पहुंच सकती है। भोटिया जनजाति के लोग मानते हैं कि उनके द्वारा बनाए गए कपड़े न केवल गर्म होते हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी होते हैं, क्योंकि इनका निर्माण प्राकृतिक सामग्री से किया जाता है। यदि इस कला को बड़े स्तर पर बढ़ावा मिले, तो यह क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने के साथ-साथ पर्यटन को भी बढ़ावा देगा।
भविष्य में वैश्विक पहचान की ओर कदम
भोटिया जनजाति के लोग अपनी पारंपरिक कला और शिल्प के द्वारा न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी पहचान बना सकते हैं। सरकार और अन्य संगठन यदि इस कड़ी में मदद करें, तो यह कपड़े न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी जगह बना सकते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि अगर उन्हें इस प्रकार के सहयोग प्राप्त होते हैं, तो आने वाले समय में उनकी कला और उनके उत्पाद विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष
उत्तरकाशी जिले के भोटिया जनजाति के लोग अपनी पारंपरिक कला और शिल्प के माध्यम से न केवल अपनी आजीविका चला रहे हैं, बल्कि एक अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित कर रहे हैं। उनके द्वारा तैयार किए गए गर्म कपड़े, जिनमें जैकेट, कम्बल, टोपियां और वास्कट शामिल हैं, ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और भारतीय सेना के जवानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यदि सरकार और अन्य संगठनों का सहयोग मिले, तो भोटिया जनजाति के इस शिल्प को वैश्विक पहचान मिल सकती है, और यह क्षेत्रीय विकास की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।