महबूबा मुफ्ती का उमर अब्दुल्ला पर कटाक्ष: जम्मू-कश्मीर में “हलाल” और “हराम” चुनावों का युग

महबूबा मुफ्ती का उमर अब्दुल्ला पर कटाक्ष: जम्मू-कश्मीर में “हलाल” और “हराम” चुनावों का युग

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नेशनल कॉन्फ्रेंस की चुनावी प्रक्रिया पर सवाल
महबूबा मुफ्ती ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर को अपना राज्य मानती है और उन्होंने यहां “हलाल” और “हराम” चुनावों का युग शुरू कर दिया है। महबूबा मुफ्ती का यह बयान उमर अब्दुल्ला की हालिया टिप्पणियों के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर की चुनावी प्रक्रिया के बारे में अपने विचार व्यक्त किए थे। महबूबा ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए एनसी पर आरोप लगाया कि उन्होंने चुनावी प्रक्रिया को अपने लाभ के लिए मोड़ा और राज्य में लोकतंत्र को कमजोर किया।

1947 से शुरू हुआ चुनावी इतिहास
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 1947 में, जब दिवंगत शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को मुख्य प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किया गया था, तब जम्मू-कश्मीर में चुनाव की अनुमति दी गई थी। उस समय जम्मू-कश्मीर में पहली बार चुनाव कराए गए थे, और शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। महबूबा ने कहा कि जब शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री बने, तब भी चुनाव की अनुमति थी और राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया था।

1987 के चुनाव और जमात-ए-इस्लामी का विवाद
महबूबा मुफ्ती ने अपने बयान में 1987 के चुनाव का जिक्र किया, जो जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उन्होंने कहा कि जब जमात-ए-इस्लामी ने 1987 में चुनाव लड़ा, तो चुनाव को अस्वीकार्य बना दिया गया क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस को किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नहीं चाहिए थी। महबूबा ने एनसी पर आरोप लगाया कि उन्होंने उस समय चुनाव के दरवाजे सभी के लिए बंद कर दिए और तब से “हलाल” और “हराम” चुनावों का युग शुरू कर दिया। महबूबा मुफ्ती के अनुसार, 1987 का चुनाव जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक विवादास्पद दौर था, जिसमें व्यापक धांधली के आरोप लगे थे। इस चुनाव के बाद राज्य में अशांति बढ़ गई थी, और कई लोग मानते हैं कि इसी चुनाव के परिणामस्वरूप कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा मिला। महबूबा ने इस चुनाव को एनसी की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नियंत्रित करने की कोशिश के रूप में देखा और इसे “हराम” चुनाव का उदाहरण बताया।

जमात-ए-इस्लामी पर लगे प्रतिबंध और उनकी मांग
महबूबा मुफ्ती ने जमात-ए-इस्लामी पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की मांग की। उन्होंने कहा कि अगर जमात चुनाव लड़ना चाहती है तो यह एक सकारात्मक कदम होगा, और सरकार को इस संगठन पर से प्रतिबंध हटाने पर विचार करना चाहिए। महबूबा ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी को चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने का हक है, और सरकार को उन सभी संपत्तियों और संस्थानों को मुक्त करना चाहिए जिन्हें जब्त कर लिया गया है। जमात-ए-इस्लामी पर 2019 में प्रतिबंध लगाया गया था, जब केंद्र सरकार ने इसे देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया था। जमात-ए-इस्लामी पर आरोप था कि वह आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन दे रही थी और अलगाववादी तत्वों के साथ संबंध बना रही थी। इस संगठन पर लगे प्रतिबंध के बाद, इसके कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया था और इसकी संपत्तियों को जब्त कर लिया गया था। महबूबा मुफ्ती ने अपने बयान में कहा कि जमात-ए-इस्लामी पर लगे प्रतिबंध को हटाने से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी और राजनीतिक धारा को समृद्ध किया जा सकेगा। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह जमात-ए-इस्लामी के नेताओं को चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने का मौका दे, ताकि जम्मू-कश्मीर में एक स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण किया जा सके।

नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के बीच तनाव
महबूबा मुफ्ती का यह बयान नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है। जम्मू-कश्मीर की राजनीति में यह दोनों दल प्रमुख भूमिका निभाते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इनके बीच का तनाव बढ़ता गया है। महबूबा मुफ्ती का उमर अब्दुल्ला पर कटाक्ष यह दिखाता है कि आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर की राजनीति और भी अधिक विवादास्पद हो सकती है। महबूबा मुफ्ती के इस बयान से यह साफ हो गया है कि पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच की खाई और गहरी होती जा रही है। उन्होंने एनसी पर आरोप लगाया कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करने की कोशिश की और राज्य में लोकतंत्र को कमजोर किया। वहीं, उमर अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं ने महबूबा मुफ्ती के आरोपों को नकारा और उन्हें राजनीतिक लाभ के लिए की गई टिप्पणियाँ बताया।

निष्कर्ष
महबूबा मुफ्ती का उमर अब्दुल्ला पर कटाक्ष और 1987 के चुनाव के बारे में की गई टिप्पणियाँ जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नए विवाद को जन्म दे सकती हैं। उनके बयान ने नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के बीच के तनाव को उजागर किया है और यह भी दिखाया है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति कितनी जटिल और विवादास्पद है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बयान का क्या प्रभाव पड़ता है और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में यह कैसे बदलाव लाता है। महबूबा मुफ्ती की मांग कि जमात-ए-इस्लामी पर से प्रतिबंध हटाया जाए, सरकार के लिए एक नई चुनौती हो सकती है। जम्मू-कश्मीर की राजनीति में यह समय बदलाव और संघर्ष का है, और इसमें आने वाले चुनाव महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


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