36 घंटे का निर्जला उपवास रख कर श्रृद्धालुओं ने अस्त होते सूर्य को दिया अघ्र्य

36 घंटे का निर्जला उपवास रख कर श्रृद्धालुओं ने अस्त होते सूर्य को दिया अघ्र्य

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हरियाणा- जिलाभर में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बिहार से आए प्रवासियों द्वारा छठ पर्व का त्योहार गुरूवार को श्रद्धा से मनाया गया। शहर के मध्य स्थित हांसी ब्रांच नहर पर व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं ने पूजा की और फिर डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य दिया। श्रृद्धालू रमन, राजकुमार महतो, चंद्रदेव सिंह, चिमन शर्मा, फूल कुमार साहनी, विनू महतो आदि ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार छह पर्व पर 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जताा है। इस व्रत को रखने से श्रद्धालुओं द्वारा मांगी गई मन्नते पूर्ण होती है। अपने परिवार की समृद्धि व शांति, पुत्र प्राप्ति व पति दिर्घायू की कामना के लिए छठ पर्व की पूजा की जाती है। यह पर्व शुकल पक्ष छठ मनाया जाता है।

छठ का पर्व चार दिन तक सूर्य की उपासना करके मनाया जाता है। नहाय-खाय के दिन कद्दू व चावल का भोजन करके उपवास करते हैं। उसके पश्चात खरना के रूप मनाया जाता है। इस व्रत में 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ आस्था व भक्ति के साथ मनाई जाती है। उससे अगले दिन छिपते सूरज को अघ्र्य देते है तथा अगली सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य देकर मनाते हैं। इस पर्व को सदियों से मनाया जाता है। जिसके पीछे आस्था से जूडी हुई अनेक मान्यताएं है। इसके साथ ही गन्ने की रस के रस व चावल के खीर से अपना व्रत खोलते है। यह छठ पर्व बिहार-उत्तर प्रदेश समेत विदेशों में भी मनाया जाता है।

उन्होने बताया कि इस पर्व की पूजा चार दिन चलती है। दीपावली के चौथे दिन पूजा शुरू हो जाती है। इस पर्व की खास बात यह है कि कुछ परिवारों के सदस्यों की इस दिन भीख मांगने की भी परंपरा है। इसमें वह अपना चेहरा नही दिखाते हैं। जिसकी जितनी श्रद्धा होती है, उसके हिसाब से वह इनको दान देते है। उनका कहना था कि यह परंपरा वह इसलिए अपनाए हुए हैं ताकि उनकी मनोकामना पूर्ण हो सके।
बुधवार को नहाय-खाय से हुई थी छठ पूजा की शुरूआत की।

नहाय-खाय करने के साथ ही बुधवार को छठ पूजा की शुरुआत हुई थी। जिले में इस समय पूर्वांचल के लगभग छह हजार लोग रह रहे हैं। खरना के दिन छठी मैया को प्रसाद का भोग लगाने के बाद 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत की शुरुआत हुई। गुड़ के मीठे चावल, सुहारी का प्रसाद बनाया गया। छठी मैया को भोग लगाने के बाद ही श्रद्धालुओं ने प्रसाद का भोग लगाया। गुरुवार शाम को श्रद्धालु अपने परिवार के साथ पिंडारा, रानी तालाब, जयंती देवी मंदिर के निकट स्थित हांसी ब्रांच नहर पर पहुंचे और डूबते सूर्य को अघ्र्य देकर श्रद्धालुओं ने संतान सुख, परिवार के कल्याण के लिए सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त किया। आठ नवंबर को चौथे दिन उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा। इस दिन ही व्रती श्रद्धालु अघ्र्य के बाद पारण करेंगे। पूर्वांचल के विजय सिंह ने बताया कि छठ पूजा को महापर्व की भांति हर्षोल्लास से हर वर्ष मनाया जाता है। छठ पूजा को लेकर झारखंड, बिहार, बंगाल, मध्यप्रदेश में विशेष तौर पर तीन दिन की छुट्टी होती है।

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पूर्वांचल प्रकोष्ठ के संयोजक संतोष कुमार ने बताया कि छठ ऐसा महापर्व है जिसकी जड़ें आज से नहीं बल्कि रामायण, महाभारत काल से ही जमी हुई हैं। श्रद्धालुओं को छठ महापर्व का पूरे साल इंतजार रहता है। छठ पूजा करके श्रद्धालु संतान सुख, परिवार के कल्याण के लिए सूर्य देव से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसका धार्मिक, सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्व है। खरना के दिन छठी मैया उपासना की जाती है। यह व्रत शारीरिक, मानसिक शुद्धि के लिए किया जाता है। खरना के दिन बना प्रसाद को देवताओं को अर्पित करने के बाद ही ग्रहण किया जाता है। खरना का व्रत ईश्वर के प्रति समर्पण, भक्ति का प्रतीक है।


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