News By:Pulse24 News Desk
श्रावण माह का आखिरी सोमवार महाराष्ट्र के अकोला जिले में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन यहां के ऐतिहासिक राजराजेश्वर मंदिर से निकलने वाली पालकी और कावड़ यात्रा का आयोजन होता है। यह महोत्सव महाराष्ट्र के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है और इसे देखने और भाग लेने के लिए न केवल देश के कोने-कोने से, बल्कि विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु अकोला में जुटते हैं। इस वर्ष भी इस परंपरा को कायम रखते हुए शिव भक्तों ने गांधीग्राम के पूर्णा नदी से जल लेकर राजराजेश्वर मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक किया।
राजराजेश्वर मंदिर से गांधीग्राम तक कावड़ यात्रा
श्रावण माह के इस अंतिम सोमवार को अकोला के ऐतिहासिक राजराजेश्वर मंदिर में कावड़ और पालकी महोत्सव का आयोजन किया गया। हजारों शिव भक्त इस पावन अवसर पर सुबह से ही अकोला के गांधीग्राम स्थित पूर्णा नदी के तट पर एकत्रित होने लगे। यहां से वे कावड़ में पवित्र जल भरकर पैदल राजराजेश्वर मंदिर तक की 18 किलोमीटर लंबी यात्रा पर निकले। इस यात्रा के दौरान हर जगह “हर हर महादेव” के जयघोष की गूंज सुनाई देती रही, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। इस महोत्सव का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सामूहिकता का भी प्रतीक है। इसमें भाग लेने वाले सभी शिव भक्त एकजुट होकर यात्रा करते हैं और भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। हर साल लाखों की संख्या में शिव भक्त इस यात्रा में भाग लेने के लिए आते हैं, और इस बार भी गांधीग्राम से अकोला तक का मार्ग शिव भक्तों से भरा हुआ था।
ऐतिहासिक राजराजेश्वर मंदिर और कावड़ महोत्सव
राजराजेश्वर मंदिर अकोला का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो न केवल स्थानीय लोगों बल्कि दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी विशेष आकर्षण का केंद्र है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और श्रावण माह के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है। कावड़ महोत्सव में श्रद्धालु गांधीग्राम की पूर्णा नदी से पवित्र जल लेकर राजराजेश्वर मंदिर तक पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्रा करीब 18 किलोमीटर की होती है, जिसे पूरा करने के लिए श्रद्धालु बड़े उत्साह के साथ निकलते हैं। मंदिर में पहुंचने के बाद, ये श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं और अपने परिवार तथा समाज की खुशहाली की कामना करते हैं। इस महोत्सव में शामिल होने के लिए अकोला और आसपास के क्षेत्रों के अलावा, महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों से भी लोग बड़ी संख्या में आते हैं। इसके अलावा, इस महोत्सव की शोभा बढ़ाने के लिए विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह महोत्सव इसलिए भी खास है क्योंकि यह महाराष्ट्र के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण अवसर है।
डाबकी रोड परिसर की भव्य पालकी यात्रा
कावड़ यात्रा के साथ-साथ, डाबकी रोड परिसर से निकलने वाली 2100 हंडों की विशाल पालकी भी इस महोत्सव का एक प्रमुख आकर्षण है। इस वर्ष, यह भव्य पालकी यात्रा आज दोपहर 11:00 बजे पूजा-अर्चना के बाद शुरू हुई। इस पालकी यात्रा में हजारों की संख्या में शिव भक्त शामिल हुए, जिन्होंने “हर हर महादेव” के जयघोष के साथ गांधीग्राम की ओर प्रस्थान किया। इस पालकी यात्रा की खास बात यह है कि इसमें शामिल हंडों (बर्तन) की संख्या और उनका आकार भी यात्रा को विशेष बनाता है। यह महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह अकोला के समाज और सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाता है।
सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासन की तैयारियाँ
इस महोत्सव में लाखों लोगों के जुटने के कारण प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। अकोला के जिला अधिकारी अजीत कुंभार, जिला पुलिस अधीक्षक बच्चन सिंह, और अकोला महानगरपालिका आयुक्त संजय लहाने ने अधिकारियों के साथ मिलकर राजराजेश्वर मंदिर से लेकर अकोट फाइल तक के मार्ग का निरीक्षण किया। इस निरीक्षण के दौरान, उन्होंने मार्ग पर आने वाली सभी चुनौतियों को दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाए। इसके साथ ही, सुरक्षा के लिहाज से भारी पुलिस बंदोबस्त भी किया गया। गांधीग्राम में विशेष रूप से आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए नदी में गोताखोरों की टीम तैनात की गई थी, ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को रोका जा सके। इसके अलावा, महोत्सव के दौरान भीड़ को नियंत्रित करने और व्यवस्था बनाए रखने के लिए स्थानीय प्रशासन ने जगह-जगह पर पुलिस बल की तैनाती की थी। प्रशासन के इस समर्पण और तैयारी के कारण, महोत्सव के दौरान कोई अप्रिय घटना नहीं हुई और सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ।
श्रद्धालुओं की श्रद्धा और उमंग
इस महोत्सव के दौरान शिव भक्तों का उत्साह देखने लायक था। लाखों लोग जोश और भक्ति के साथ यात्रा में शामिल हुए। कावड़ियों ने गांधीग्राम से पवित्र जल भरकर राजराजेश्वर मंदिर में शिवलिंग का अभिषेक किया। इस दौरान पूरे मार्ग पर भक्ति गीतों की धुनों के साथ-साथ श्रद्धालुओं की जयकारों की गूंज सुनाई देती रही। कावड़ यात्रा और पालकी महोत्सव ने अकोला के लोगों के दिलों में भक्ति और श्रद्धा की भावना को और गहरा कर दिया। हर कोई इस पवित्र अवसर पर अपने परिवार और समाज की खुशहाली की कामना करते हुए भगवान शिव से प्रार्थना कर रहा था।
श्रावण माह का आखिरी सोमवार अकोला के लिए एक विशेष दिन होता है, जब यहां का सबसे बड़ा कावड़ और पालकी महोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष भी यह महोत्सव भक्तिमय वातावरण और भव्यता के साथ संपन्न हुआ। लाखों की संख्या में शिव भक्तों ने इस यात्रा में भाग लिया और गांधीग्राम से पवित्र जल लेकर राजराजेश्वर मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया। प्रशासन द्वारा की गई सुरक्षा व्यवस्था और तैयारियों ने इस महोत्सव को सफल और सुरक्षित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अकोला के इस धार्मिक आयोजन ने न केवल स्थानीय लोगों बल्कि देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं को भी प्रभावित किया। इस महोत्सव ने यह साबित किया कि अकोला की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर आज भी उतनी ही मजबूत और प्रभावशाली है जितनी कि पहले थी।