News By:Pulse24 News Desk
रायपुर: एक 37 वर्षीय महिला, जिसे 10 साल पहले एक दुर्लभ और जटिल हृदय रोग, एबस्टीन एनोमली (Ebstein’s Anomaly) के कारण सर्जरी से गुजरना पड़ा था, अब एम एम आई अस्पताल के डॉक्टरों की विशेषज्ञ टीम के प्रयासों से एक नया जीवन जी रही है। यह सर्जरी और इसके बाद की चिकित्सा प्रक्रियाएं चिकित्सा विज्ञान में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में मानी जा रही हैं।
एबस्टीन एनोमली और प्रारंभिक सर्जरी की चुनौती:
एबस्टीन एनोमली एक जन्मजात हृदय विकार है, जिसमें दिल का दायां हिस्सा ठीक से काम नहीं करता है। इस महिला के मामले में, 10 साल पहले उनके दिल की जटिलता के कारण उन्हें एक असामान्य और चुनौतीपूर्ण सर्जरी से गुजरना पड़ा। इस सर्जरी में उनके दिल को चार चैम्बर वाले दिल से दो चैम्बर वाले दिल में बदल दिया गया। आम तौर पर, गंदा खून (ऑक्सीजन रहित रक्त) दाईं तरफ के दिल में प्रवेश करता है, जहां से इसे फेफड़ों में भेजा जाता है। फेफड़ों में शुद्ध होने के बाद, यह खून दिल के बाईं तरफ पहुंचता है और फिर पूरे शरीर में पंप किया जाता है। इस महिला के मामले में, सर्जरी के बाद उनके दिल के दाईं तरफ का हिस्सा निष्क्रिय कर दिया गया, जिससे खून सीधे फेफड़ों में पहुंचने लगा।
सर्जरी के बाद की जटिलताएं:
इस प्रारंभिक सर्जरी के लगभग 8 साल बाद, महिला ने एक नई समस्या का सामना किया। उन्हें दिल की धड़कन में अनियमितता के कारण बार-बार बेहोशी के दौरे पड़ने लगे। इस समस्या को चिकित्सा भाषा में सिक साइनस सिंड्रोम कहा जाता है, जिसमें दिल की धड़कन बेहद असामान्य हो जाती है—कभी यह 20 धड़कन प्रति मिनट तक घट जाती है, तो कभी 140 धड़कन प्रति मिनट तक बढ़ जाती है। हालांकि, इस प्रकार की सर्जरी के बाद, लगभग 5% मामलों में इस तरह की जटिलताएं हो सकती हैं। महिला ने इस समस्या के समाधान के लिए कई डॉक्टरों से परामर्श लिया, लेकिन कोई संतोषजनक समाधान नहीं मिला। अंततः, अगस्त 2024 में वह रायपुर के एम एम आई अस्पताल पहुंची, जहां बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. किंजल बख्शी ने उनकी स्थिति का गहनता से अध्ययन किया।
एम एम आई अस्पताल में विशेषज्ञता और इलाज:
एम एम आई अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के क्लिनिकल लीड डॉ. सुमनता शेखर पांधी और सीनियर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. किंजल बख्शी ने इस जटिल मामले को समझने और उपचार के लिए एक नवीन दृष्टिकोण अपनाने का निर्णय लिया। सिक साइनस सिंड्रोम के कारण हो रही समस्या का सबसे उचित इलाज पेसमेकर लगाना था, लेकिन महिला के दिल की जटिल संरचना के कारण यह प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण थी। आम तौर पर, पेसमेकर लगाने के लिए शरीर के ऊपरी हिस्से से गंदा खून लाने वाली रक्त वाहिकाओं का उपयोग किया जाता है, जिसे सुपीरियर वेना कावा कहा जाता है। इस प्रक्रिया में, पेसमेकर लीड को दिल के दाईं तरफ के हिस्से से जोड़ा जाता है, और पल्स जनरेटर को छाती की दीवार में लगाया जाता है।
चुनौतीपूर्ण सर्जरी और सफलता:
महिला के मामले में, सुपीरियर वेना कावा को पहले ही पल्मोनरी आर्टरी से जोड़ा जा चुका था, जिससे पेसमेकर लीड को सही तरीके से स्थापित करना लगभग असंभव हो गया था। यह स्थिति सर्जरी को अत्यंत जटिल बना रही थी, लेकिन डॉक्टरों ने इस चुनौती का सामना करने के लिए एक नवीन दृष्टिकोण अपनाया। डॉ. सुमनता शेखर पांधी और उनकी टीम ने महिला के दिल के दाईं तरफ के छोटे से हिस्से तक पहुंचने के लिए विशेष तकनीक का उपयोग किया। इसके बाद, पेसमेकर लीड को सही तरीके से स्थापित किया गया और पल्स जनरेटर को दिल के बाकी हिस्सों से जोड़ा गया। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 5 घंटे लगे। सर्जरी के बाद, महिला की हालत में तेजी से सुधार हुआ और चौथे दिन उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। डॉक्टरों का कहना है कि पेसमेकर लगाने के बाद अब उनकी दिल की धड़कन स्थिर हो गई है और बेहोशी के दौरे आने बंद हो गए हैं।
डॉक्टरों की विशेषज्ञता और मरीज की उम्मीद:
इस सर्जरी ने न केवल महिला को एक नई जिंदगी दी है, बल्कि यह भी साबित किया है कि चिकित्सा विज्ञान में सही विशेषज्ञता और नवीन दृष्टिकोण अपनाकर कितनी बड़ी चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है। डॉ. सुमनता शेखर पांधी और डॉ. किंजल बख्शी की टीम ने इस जटिल मामले को सफलतापूर्वक हल किया, जिससे महिला का जीवन बचा। इस प्रक्रिया के दौरान अपनाई गई तकनीक और उनकी विशेषज्ञता ने उन्हें चिकित्सा क्षेत्र में एक मिसाल कायम करने में मदद की। चिकित्सा टीम के साथ सही अस्पताल में इलाज कराने से असंभव दिखने वाली चुनौतियों का भी समाधान हो सकता है। यह महिला अब अपने नए जीवन की शुरुआत कर रही है, जिसमें वह बिना किसी जटिलता के सामान्य जीवन जी सकेगी।