जाने क्या है डिजिटल अरेस्ट, इसके बचाव और उपाय

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डिजिटल अरेस्ट एक ऐसा शब्द है जो कानूनी व्यवस्था में नहीं है, लेकिन अपराधियों द्वारा किए जा रहे इस प्रकार के बढ़ते अपराधों के कारण इसका प्रचलन हुआ है। पिछले तीन महीनों में दिल्ली-एनसीआर में 600 मामले सामने आए हैं, जिनमें 400 करोड़ रुपये की ठगी हुई है। डिजिटल अरेस्ट के मामले इन दिनों तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसमें साइबर अपराधी आसानी से लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और साइबर अपराध विशेषज्ञ विराग गुप्ता से विशेष चर्चा की गई। इस बातचीत में उन्होंने डिजिटल अरेस्ट के तरीकों, सजा के प्रावधानों और इससे बचने के उपायों पर विस्तार से जानकारी दी।

क्या है डिजिटल अरेस्ट?
डिजिटल अरेस्ट में किसी व्यक्ति को ऑनलाइन तरीके से डराया जाता है। जिसमें वह सरकारी एजेंसी द्वारा गिरफ्तार जाता है और उसे जुर्माना देना होता है। यह शब्द कानूनी तौर पर मान्य नहीं है, लेकिन अपराधियों द्वारा किए जा रहे इस तरह के अपराधों की वजह से इसका उदय हुआ है। पिछले तीन महीनों में दिल्ली-एनसीआर में ऐसे 600 मामले सामने आए हैं, जिनमें 400 करोड़ रुपये की ठगी की गई है। इसके अलावा, कई ऐसे मामले भी होते हैं जो रिपोर्ट नहीं किए जाते। कई बार ठग अपनी कोशिशों में सफल नहीं हो पाते। डिजिटल अरेस्ट के संगठित गिरोह का अभी तक कोई खुलासा नहीं हुआ है, जिसके कारण ये मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

डिजिटल अरेस्ट के ठगी के तरीके
इसमें ठगी के 4-5 मुख्य तरीके होते हैं। उदाहरण के लिए, किसी कूरियर का नाम लेकर कहा जाता है कि उसमें गलत सामान आया है। या फिर कहा जाता है कि कूरियर में ड्रग्स हैं, जिससे आप मुश्किल में पड़ सकते हैं। आपके बैंक खाते से वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े ट्रांजैक्शन का दावा किया जाता है। मनी लॉन्ड्रिंग या एनडीपीएस के डर से अधिकतर शिक्षित और कानून की जानकारी रखने वाले लोगों को फंसाया जाता है। उनसे डिजिटल माध्यम से फिरौती मांगी जाती है। यदि उनके खातों में पैसे नहीं होते हैं, तो उन्हें लोन दिलवाने का झांसा दिया जाता है। कई बार ठग लोन एप्स डाउनलोड करवा लेते हैं। कुछ मामलों में, ठग दो से तीन दिन तक डिजिटल अरेस्ट में रखते हैं।

अपराध का तरीका और उपाय
इस अपराध में कई तरीके शामिल होते हैं जैसे फर्जी सिम कार्ड का उपयोग, फर्जी बैंक खाता खोलना, और पैन कार्ड, आधार कार्ड जैसी व्यक्तिगत जानकारी को अवैध रूप से इकट्ठा करना। पीड़ितों के खातों से पैसे ट्रांसफर कराए जाते हैं, और कई बार क्रिप्टोकरेंसी या गेमिंग एप के माध्यम से हवाला के जरिए पैसा विदेश भेजा जाता है।
विराग गुप्ता ने बताया कि सरकारी एजेंसियां कभी भी ऑनलाइन पूछताछ नहीं करतीं। सरकारी एजेंसी केवल व्यक्तिगत रूप से पूछताछ करती है। यदि किसी के साथ ऐसा कुछ होता है, तो दो तरीकों से शिकायत की जा सकती है—साइबर फ्रॉड के हेल्पलाइन नंबर पर या ईमेल के माध्यम से। इसके अलावा, स्थानीय पुलिस में भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। यदि पीड़ित एक घंटे के भीतर पुलिस को सूचित करता है, तो ट्रांसफर किए गए पैसे को वापस पाने की संभावना रहती है।

संगठित अपराध का खुलासा
उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि ठगों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे सिम कार्ड और बैंक खातों पर दिए गए पते फर्जी होते हैं। अपराधियों की वास्तविक लोकेशन अलग होती है। भारत में कॉल सेंटरों के माध्यम से इस संगठित अपराध को अंजाम दिया जा रहा है।


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