News By:Pulse24 News Desk
महाराष्ट्र- अकोला: हाल ही में संसद में पेश वक्फ संशोधित बिल 2024 फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास विचाराधीन है। इस बिल को लेकर देशभर के मुस्लिम समुदाय ने आपत्ति जताई है, जिसका मुख्य कारण संविधान में किए गए मूल अधिकारों के प्रावधानों का उल्लंघन है। जेपीसी द्वारा मंगाए गए सुझावों में इस बिल पर आपत्तियां दर्ज कराने का सिलसिला जारी है। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि इस बिल को वापस लेते हुए 2013 के वक्फ बिल को जस का तस रखा जाना चाहिए।
इस मुद्दे पर आज एक प्रेस कांफ्रेंस में जमात-ए-इस्लामी हिंद के प्रदेशाध्यक्ष और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य इलियास खान फलाही ने विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वक्फ की संपत्तियों की सुरक्षा के अधिकार सबसे पहले 1863 में अंग्रेजों ने केवल मुस्लिमों को दिए थे। स्वतंत्रता के बाद 1954 से 1983 तक इन अधिकारों को जस का तस बनाए रखा गया।
वक्फ संपत्तियों का सर्वे और बिल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1995 से 2005 के बीच केंद्र सरकार ने वक्फ की संपत्तियों का सर्वे कराया था, जिसके बाद 2013 में वक्फ की संपत्तियों को लेकर संविधान के दायरे में एक बिल तैयार किया गया था। इस बिल में वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया की भूमिका को अहम माना गया।
वर्तमान संशोधित बिल में आपत्तियां
हालांकि, वर्तमान वक्फ संशोधित बिल 2024 में कुल 40 संशोधन किए गए हैं। इन संशोधनों में संविधान के आर्टिकल नंबर 25, 26 और 53 (ए) के तहत किए गए मूल अधिकारों के प्रावधानों का उल्लंघन किया जा रहा है। इसके चलते देशभर के मुस्लिम समुदाय ने इस बिल का विरोध किया है और इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
मुस्लिम समुदाय की मांग
इलियास खान फलाही ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस बिल को वापस लेकर 2013 के वक्फ बिल को पूर्व की स्थिति में बहाल किया जाना चाहिए। मुस्लिम समुदाय का यह भी कहना है कि बिल के संशोधनों से वक्फ की संपत्तियों की सुरक्षा और प्रबंधन प्रभावित होगा, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
प्रेस कांफ्रेंस में इलियास खान ने यह भी स्पष्ट किया कि मुस्लिम समुदाय संविधान के अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की अनावश्यक बदलाव को स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा, “हम अपने अधिकारों के उल्लंघन को किसी भी कीमत पर सहन नहीं करेंगे और हम इस मुद्दे को लेकर कानूनी और जनहित कार्यवाही जारी रखेंगे।”